जानिए metal detector क्या होता है? कैसे ये धातु का पता लगा लेता है? ये कितने प्रकार का होता है ,यह कितना विश्वसनीय है तथा इसका उपयोग कहा किया जाता है?
दोस्तों मेटल डिटेक्टर आपने नाम तो काफी सुना होगा लेकिन कभी आपने सोचा है की यह काम कैसे करता है? क्या हर बार यह अपने काम में 100% सफल होता है? क्या कोई मेटल डेटेक्टरो को bypass कर सकता है? तथा एक साधारण से डिटेक्टर की इंडिया में कितनी कीमत है ? ये सारी जानकारी में आप तक इस लेख के माध्यम से पहुंचने का प्रयाश करूँगा।
अनुक्रम
Metal detector क्या हैं ?
मेटल डिटेक्टर एक इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण होता हैं। जो अपने आस-पास में किसी भी धातु की उपस्थिति का पता लगाता है। मेटल डिटेक्टर वस्तुओं के भीतर छिपे धातु के अणुओं, या भूमिगत दफन धातु की वस्तुओं को खोजने के लिए उपयोगी होते हैं।
मेटल डिटेक्टर को हम एक सेंसर की तरह भी मान सकते हैं, जिसे किसी वस्तु या जमीन के पास ले जाने पर यदि उसमे कोई मेटल की चीज हे तो ये उसे सेन्स कर लेता है ।
यह डिवाइस अपने कार्य के आधार पर अलग,अलग दूरी क्षमता, बनावट तथा कार्य सिद्धांत के होते है । मेटल डिटेक्टर (धातु संसूचक) के अंदर कोई बहुत जटिल तकनीक नहीं होती है यह एक बहुत ही साधारण फिजिक्स के सिद्धांत पर कार्य करता है जिसे Electromagnetic(विधुत-चुम्बकीय) सिद्धांत कहते है।
History of metal detector (इतिहास)
सन 1874
गुस्ताव ट्रौवे जो, पेरिस के आविष्कारक थे उन्होंने युद्ध में घायल मानवो के शरीर से गोलियों जैसी छोटे धातु के हथियारों का पता लगाने जिससे वो आसानी से उन्हें निकाल सके, के लिए एक हाथ से पकड़ने वाला उपकरण विकसित किया। इसी को आधुनिक मेटल डेटेक्टरो का आधार माना जाता है।
सन 1881
1881 में अलेक्जेंडर ग्राहम बेल ने ट्रौवे से प्रेरित होकर जेम्स गारफील्ड जो उस समय अमेरिका के राष्ट्रपति थे, को लगी गोली का पता लगाने के लिए ट्रौवे जैसा ही एक उपकरण बनाया और यह काफी हद तक सफल भी रहा।
सन 1920-1948
मेटल डिटेक्टर का आधुनिक विकास 1920 के दशक में शुरू हुआ था। उन्होंने यह बताया की यदि किसी रेडियो बीम को धातु से टकराकर विकृत किया जा सकता है, तो एक ऐसी मशीन को बनाना संभव होना चाहिए जो रेडियो फ्रीक्वेंसी पर गूंजने वाले सर्च कॉइल का उपयोग करके धातु का पता लगाए।
इसके बाद 1925 को उन्होंने मेटल डिटेक्टर के लिए पहले पेटेंट के लिए आवेदन किया, और वो उन्हें मिल गया।
1929 में हेर नामक वैज्ञानिक ने इटली के नेमी झील के तल से धातु की कुछ चीज ढूढ़ने के लिए एक उपकरण बनाया जिसे 1933 में एडमिरल रिचर्ड बर्ड के दूसरे अंटार्कटिक अभियान में भी प्रयोग किया। यह आठ फीट की गहराई तक प्रभावी था।
द्वितीय विश्व युद्ध के शुरुआती वर्षों के दौरान कोसाकी नामक सैन्य अधिकारी ने एक व्यावहारिक पोलिश माइन डिटेक्टर बनाया।ये इकाइयाँ काफी भारी थीं, क्योंकि वे वैक्यूम ट्यूबों पर चलती थीं ।
चूंकि इस डिवाइस का निर्माण और शोधन एक युद्ध के समय का सैन्य अनुसंधान अभियान था, जिस कारण यह ज्ञान 50 वर्षों से अधिक समय तक गुप्त रखा गया था।
पूर्ण रूप से काम करने वाला पहला व्यावहारिक मेटल डिटेक्टर कोसाकी ने बनाया था।
Metal detector कैसे काम करता है? (Working of the metal detector)
मेटल डिटेक्टर विधुत-चुम्बकीय (Electromagnetism) के सिद्धांत पर काम करता है। तो इस उपकरण के कार्य सिद्धांत को समझने से पहले आपको James Clerk Maxwell (1831–1879) के द्वारा दिए गए दो नियमो का जाना जरूरी हैं।
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विधुत–चुम्बकीय सिद्धांत
- जब भी किसी विद्युत क्षेत्र में बदलव होता है, तो आपको एक परिवर्तित चुंबकीय क्षेत्र प्राप्त होता हैं।
- जब भी किसी चुंबकीय क्षेत्र बदलाव होता है, तो आपको एक परिवर्तित विद्युत क्षेत्र प्राप्त होता है।
इन दो सिद्धांतो से मैक्सवेल का कहना था की विधुत और चुम्बक एक ही चीज के दो पहलु होते हैं।
Working
विभिन्न मेटल डिटेक्टर, विभिन्न तरीको से काम करते है, इस लेख में हम एक साधारण तथा सबसे अधिक प्रयोग में आने वाले डिटेक्टरों के कार्य सिद्धांत के पीछे के विज्ञानं को समझेंगे।
मेटल डिटेक्टर में तार (wire) लपेटकर एक कुंडली (coil) बनाई जाती है, जो डिटेक्टर के ऊपरी सिरे से नीचे गोलाकार सिरे तक लपेटा जाता हैं। इसे ट्रांसमीटर कॉइल कहा जाता है।
जब इस कॉइल में विधुत धारा प्रवाहित होती है तब एक चुम्बकीय क्षेत्र निर्मित हो जाता है, जब डिटेक्टर को इधर उधर घुमाते है तो यह चुम्बकीय क्षेत्र भी साथ-साथ गतिमान होता है ।
यदि आप डिटेक्टर को किसी धातु की वस्तु के ऊपर ले जाते हैं, तो गतिमान चुंबकीय क्षेत्र धातु के अंदर के परमाणुओं को प्रभावित करता है। ये परमाणु असल में इलेक्ट्रान होते है जो धातु की कक्षा में परिक्रमा कर रहे होते हैं।
वास्तव में, यह इलेक्ट्रॉनों की गति को प्रभावित करता हैं। जिससे इस धातु में भी एक गतिमान विधुत क्षेत्र उत्पन्न होता है, अब मैक्सवेल के अनुसार जहा गतिमान विधुत क्षेत्र होता है वहा चुंबकीय क्षेत्र भी उत्पन्न होता है।
इसलिए, जब आप मेटल डिटेक्टर को धातु के एक टुकड़े के ऊपर ले जाते हैं, तो डिटेक्टर से आने वाले चुंबकीय क्षेत्र के कारण धातु के चारों ओर एक और चुंबकीय क्षेत्र दिखाई देता है।
रिसीवर
धातु के चारो ओर बने इस सेकंडरी चुम्बकीय क्षेत्र को डिटेक्टर सेंस करता है। मेटल डिटेक्टर में एक दूसरी कुंडली भी होती है जिसे रिसीवर कॉइल कहा जाता है। जो लाउडस्पीकर वाले सर्किट से जुड़ा होता है।
अब जैसे ही आप डिटेक्टर को धातु के टुकड़े के आस पास या ऊपर से ले जाते हैं, धातु द्वारा उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र कुंडली के माध्यम से कट जाता है।
ट्रांसमीटर कॉइल को धातु के टुकड़े के जितना करीब से गुजरता हैं, ट्रांसमीटर कॉइल उतना ही मजबूत चुंबकीय क्षेत्र बनाता है, जिससे उतना ही मजबूत चुंबकीय क्षेत्र धातु, रिसीवर कॉइल में बनाता है। जिससे अधिक मात्रा में धरा का प्रवाह होता है ओर लाउडस्पीकर अधिक तीव्रता से बीप आवाज निकलता है।
Metal detector के प्रकार
मेटल डिटेक्टर वैसे तो तकनीक तथा काम के अनुसार कई प्रकार के होते है
तकनीक के हिसाब से मेटल डिटेक्टर के प्रकार
ये भी जानिए
हालांकि सभी प्रकार के मेटल डिटेक्टर विधुत को चुम्बक में बदल कर सिग्नल जेनरेट करते है। फिर भी इनके कार्य करने में कुछ अंतर होता हैं।
Beat frequency oscillation (बीट आवर्ती ऑसिलेशन) or BFO detector
इस तकनीक में लोहे या स्टील के चारों ओर तांबे के दो छल्ले होते हैं। उनमें से एक ऊर्जा की धारा गुजरती है और जमीन में संचारित होती है। जब सिग्नल टूट जाता है या धातु के द्वारा छरित हो जाता है, तो डिटेक्टर एक ध्वनि तरंग को उत्पन्न करता है जो उपयोगकर्ता को संभावित लक्ष्य के प्रति सचेत करता है।
यह उपयोग में बहुत ही आसान होते है तथा किसी नौसिखिये के लिए एक दम उपयुक्त है ।
Very low frequency (अति मंद आवर्ती) or VLF detector
इस प्रकार का मेटल डिटेक्टर जमीन में धातु को खोजने के लिए दो कॉइल का उपयोग करता है, एक Transmitter coil जो signal भेजता है तथा दूसरी Receiver coil जो signal प्राप्त करता है।
प्रेषक कुंडल एक चुंबकीय क्षेत्र बनाता है जो धातु की वस्तुओं पर प्रतिक्रिया करता है। जब कोई लक्ष्य मिलता है, तो एक करंट बनता है, रिसीवर कॉइल सिग्नल लेता है और इसे स्पीकर या हेडफ़ोन को देता है जिससे हमें धातु का पता लग सके।
धातु से सूचना वापस पाने की इसकी क्षमता के कारण, बहुत सारे मेटल डिटेक्टर हैं जो VLF तकनीक का उपयोग करते हैं।
इस प्रकार के मेटल डिटेक्टर का उपयोग सभी प्रकार के सामान्य-उद्देश्य कार्यो जैसे धातु का पता लगाना, खजाने की खोज इत्यादि में किया जाता है।
इन्हे very low frequency डिटेक्टर इसलिए कहते है क्योकि आमतौर पर यह लगभग 6-20 किलोहर्ट्ज़ (30 किलोहर्ट्ज़ से कम) के आसपास की आवृत्ति का उपयोग करते है।
Pulse induction (पल्स इंडक्शन)
इससे पिछले प्रकार की मेटल डिटेक्टर तकनीकों में एक साथ दोनों कॉइल का इस्तेमाल वर्किंग किया जाता था, पल्स इंडक्शन (PI) तकनीक में एक या एक से अधिक कॉइल का उपयोग अलग तरीके से होता है। इसमें कॉइल इलेक्ट्रॉनिक धाराओं की पल्स को भेजता है जो किसी धातु की वस्तु से टकराने पर वापस परिवर्तित होती हैं।
पल्स इंडक्शन (PI) का कार्य सिदांत चमकादड़ के इकोलोकेशन की तरह है। लेकिन यह केवल धातु की पहचान करता है, इसमें लक्ष्यों के बीच अंतर बताने का कोई तरीका नहीं है ।
इस प्रकार के डिटेक्टरों का सबसे बड़ा लाभ यह है कि वे बफो या VLF की तुलना में अधिक गहराई से खोज करते हैं
सुरक्षा में प्रयोग होने वाले डिटेक्टर के प्रकार
1) Handheld Detector
Handheld detectors को चाकू, हथियारों और छिपी हुई धातु की वस्तुओं की त्वरित और कुशल बॉडी सर्च स्कैनिंग के लिए डिज़ाइन किया गया है। Handheld मेटल डिटेक्टर बड़ी संख्या में लोगों की तेजी से स्कैनिंग के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। हाथ से पकड़े जाने वाले मेटल डिटेक्टरों का उपयोग अक्सर वॉक-थ्रू मेटल डिटेक्टरों के संयोजन में किया जाता है, जिससे ऑपरेटरों को किसी व्यक्ति के शरीर को स्कैन करने में मदद मिलती है ताकि यह पता लगाया जा सके कि धातु की वस्तुएं कहां छिपी हुई हैं। इन्हें संचालित करना बेहद आसान है, बस छिपी हुई धातु की वस्तुओं का पता लगाने के लिए किसी व्यक्ति के शरीर या बैग या कंटेनर पर एक ही स्वीप की आवश्यकता होती है।
Hand-Held Metal Detector के उपयोग
1) नाइट क्लबों में दरवाजे की सुरक्षा।
2) फुटबॉल स्टेडियम या अन्य खेल आयोजनों में सुरक्षा।
3) संगीत समारोहों और अन्य कार्यक्रमों में सुरक्षा।
4) स्कूल, कॉलेज, स्थानीय प्राधिकरण और व्यवसाय जहां चाकू अपराध की रोकथाम प्राथमिकता है।
5) वॉक-थ्रू मेटल डिटेक्टर आर्च अलार्म के बाद धातु की वस्तुओं का पता लगाने के लिए बॉडी स्कैनिंग।
3) Door Frame Metal Detector (DFMD)/walk throw gates
डोर फ़्रेम मेटल डिटेक्टर (DFMD) जैसा कि नाम से पता चलता है, एक मेटल डिटेक्टर है जो दरवाजे में लगाया जाता है ताकि उस धातु का पता लगाया जा सके जो इस दरवाजे से गुजरने वाले व्यक्ति के शरीर पर छिपा हो सकता है। इसे “वॉक थ्रू” मेटल डिटेक्टर के रूप में भी जाना जाता है।
2) Deep Search Metal Detectors (DSMD)
डीप सर्च मेटल डिटेक्टर (DSMD) धातु के छिपे और दबे हुए टुकड़ों का पता लगाने में मदद करते हैं। इस प्रकार ये उपकरण छिपे/दबे हुए धातु का पता लगाने में बेहद प्रभावी हैं। Deep Search Metal Detectors का उपयोग वन्यजीव अभ्यारणों में ऐसे फंदे/जाल का पता लगाने में भी किया जाता है जो अक्सर मलबे में छिपे रहते हैं जिससे मैन्युअल गश्त के माध्यम से उनका पता लगाना लगभग असंभव हो जाता है, और डीएसएमडी नियमित गश्त के दौरान या किसी क्षेत्र की लक्षित स्कैनिंग के दौरान जाल का पता लगा सकते हैं।
कुछ मामलों में, यदि जानवर गोली लगने से मारा गया हो तो गोली का पता लगाने के लिए पोस्टमार्टम परीक्षाओं के दौरान डीएसएमडी का भी उपयोग किया जाता है।
Metal detector का प्रयोग कहा होता है?.
मेटल डिटेक्टर का इस्तेमाल सिर्फ समुद्र तट पर सिक्के खोजने के लिए नहीं किया जाता है। इसके अन्य कई उपयोग है।
1) सुरक्षा में
2) वैज्ञानिक अनुसंधान
3) बहुमूल्य धातुओं की खोज (सोना)
आप मेटल डिटेक्टर को हवाई अड्डों पर चलने वाले स्कैनर में देख सकते हैं (लोगों को हवाई जहाज पर या अन्य सुरक्षित स्थानों जैसे जेलों और अस्पतालों में बंदूकें और चाकू ले जाने से रोकने के लिए डिज़ाइन किया गया है) और कई प्रकार के वैज्ञानिक अनुसंधान में।
FAQ
सामान्यतया, मेटल डिटेक्टर लगभग 20-50cm (8-20in) की अधिकतम गहराई पर काम करते हैं।
पोर्टेबल मेटल डिटेक्टरों का आविष्कार जर्मन में जन्मे इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर ने किया था
इन उपकरण की शुरुआती कीमत 1,000 से 7,000 के बीच में हो सकती है जो मेटल डिरेक्टर और उसके काम पर निर्भर करती है।
कोबाल्ट (Cobalt).
तांबा (Copper).
पीतल (Brass).
एल्यूमीनियम (Aluminum).
लोहा (iron)
निकिल
Conclusion
दोस्तों में आशा करता हु की इस लेख में आपको मेटल डिटेक्टर से जुडी बहुत सारी जानकारिया प्राप्त हुई होंगी। आप समझ गए होंगे की Metal detector काम कैसे करता है। अगर आपको यह लेख पसंद आया हो तो इसे अपने मित्रो के साथ जरूर साझा करे धन्यवाद।
Sir HOPE company kish desh ki hai